Friday, April 3, 2009

मीर

फ़कीराना आए सदा कर चले

मियाँ खुश रहो हम दुआ कर चले


जो तुझ बिन न जीने को कहते थे हम

सो इस अहद* को अब वफ़ा कर चले (promise)


कोई ना-उम्मीदाना करते निगाह

सो तुम हम से मुँह भी छिपा कर चले


बहोत आरजू थी गली की तेरी

सो याँ से लहू में नहा कर चले


दिखाई दिए यूं कि बेखुद किया

हमें आप से भी जुदा कर चले


जबीं सजदा करते ही करते गई

हक-ऐ-बंदगी हम अदा कर चले


परस्तिश* की याँ तैं कि ऐ बुत तुझे (pooja)

नज़र में सबों की खुदा कर चले


गई उम्र दर बंद-ऐ-फिक्र-ऐ-ग़ज़ल

सो इस फ़न को ऐसा बड़ा कर चले


कहें क्या जो पूछे कोई हम से "मीर"

जहाँ में तुम आए थे, क्या कर चले


A Mir Classic..

6 comments:

  1. bloging jagat me aapka swaagat hai.
    aage aur unnati ke liye meri shubhkaamnaye aapke saath hain.
    bahut umda likha hai.

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  2. 71-72-73, वाह-वाह, वाह-वाह!!!!

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  3. बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

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  4. It is Mir Taqi Mir's famous ghazal.. (not mine.. if you thought so.. :))

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