Tuesday, April 21, 2009

ग़ालिब - ...करे कोई

इब्न-ए-मरियम हुआ करे कोई
मेरे दुख की दवा करे कोई

चाल जैसे कड़ी कमाँ का तीर
दिल में ऐसे के जा करे कोई

बात पर वाँ ज़ुबान कटती है
वो कहें और सुना करे कोई

बक रहा हूँ जुनूँ में क्या क्या कुछ
कुछ न समझे ख़ुदा करे कोई

न सुनो गर बुरा कहे कोई
न कहो गर बुरा करे कोई

रोक लो गर ग़लत चले कोई
बख़्श दो गर ग़लत करे कोई

कौन है जो नहीं है हाजतमंद
किसकी हाजत रवा करे कोई

क्या किया ख़िज्र ने सिकंदर से
अब किसे रहनुमा करे कोई

जब तवक़्क़ो ही उठ गयी "ग़ालिब"
क्यों किसी का गिला करे कोई




Meter - 2122 1212 22

Friday, April 3, 2009

मीर

फ़कीराना आए सदा कर चले

मियाँ खुश रहो हम दुआ कर चले


जो तुझ बिन न जीने को कहते थे हम

सो इस अहद* को अब वफ़ा कर चले (promise)


कोई ना-उम्मीदाना करते निगाह

सो तुम हम से मुँह भी छिपा कर चले


बहोत आरजू थी गली की तेरी

सो याँ से लहू में नहा कर चले


दिखाई दिए यूं कि बेखुद किया

हमें आप से भी जुदा कर चले


जबीं सजदा करते ही करते गई

हक-ऐ-बंदगी हम अदा कर चले


परस्तिश* की याँ तैं कि ऐ बुत तुझे (pooja)

नज़र में सबों की खुदा कर चले


गई उम्र दर बंद-ऐ-फिक्र-ऐ-ग़ज़ल

सो इस फ़न को ऐसा बड़ा कर चले


कहें क्या जो पूछे कोई हम से "मीर"

जहाँ में तुम आए थे, क्या कर चले


A Mir Classic..

ग़ालिब

गई वो बात कि हो गुफ़्तगू तो क्यों कर हो
कहे से कुछ न हुआ फिर कहो तो क्यों कर हो

हमारे ज़हन में इस फ़िक्र का है नाम विसाल* (meeting - here -- how to meet)
कि गर न हो तो कहाँ जायें हो तो क्यों कर हो

अदब है और यही कशमकश तो क्या कीजे
हया है और यही गोमगो तो क्यों कर हो

तुम्हीं कहो कि गुज़ारा सनम परस्तों का
बुतों की हो अगर ऐसी ही ख़ू* तो क्यों कर हो (tareeka - ways of working)

उलझते हो तुम अगर देखते हो आईना
जो तुम से शहर में हो एक दो तो क्यों कर हो

जिसे नसीब हो रोज़-ए-सियाह मेरा सा
वो शख़्स दिन न कहे रात को तो क्यों कर हो

हमें फिर उन से उमीद और उन्हें हमारी क़द्र
हमारी बात ही पूछे न वो तो क्यों कर हो

ग़लत न था हमें ख़त पर गुमाँ तसल्ली का
न माने दीदा-ए-दीदारजू तो क्यों कर हो

मुझे जुनूं नहीं "ग़ालिब" वले बक़ौल-ए-हुज़ूर
फ़िराक़*-ए-यार में तस्कीन# हो तो क्यों कर हो (*doori, #peace)

Tuesday, February 10, 2009

जोगीण

साद घालशील
तेव्हाच येईन
जितकं मागशील
तितकच देईन.

दिल्यानंतर
देहावेगळ्या
सावली सारखी
निघुन जाईन.

तुझा मुगूट
मागणार नाही
सभेत नातं
सांगणार नाही.

माझ्यामधल्या
तुझेपणात
जोगीण बनून
जगत राहीन.

-- कुसुमाग्रज

simply awesome!!

Tuesday, January 13, 2009

नीड़ का निर्माण फिर-फिर

नीड़ का निर्माण फिर-फिर, नेह का आह्वान फिर-फिर!


वह उठी आँधी कि नभ में, छा गया सहसा अँधेरा,
धूलि धूसर बादलों नें भूमि को इस भाँति घेरा,
रात-सा दिन हो गया, फिर रात आई और काली,
लग रहा था अब न होगा, इस निशा का फिर सवेरा,

रात के उत्‍पात-भय से, भीत जन-जन, भीत कण-कण
किंतु प्राची से उषा की, मोहनी मुसकान फिर-फिर,

नीड़ का निर्माण फिर-फिर, नेह का आह्वान फिर-फिर,


वह चले झोंके कि काँपे, भीम कायावान भूधर,
जड़ समेत उखड़-पुखड़कर गिर पड़े, टूटे विटप वर,
हाय, तिनकों से विनिर्मित, घोंसलों पर क्‍या न बीती,
डगमगाए जबकि कंकड़, ईंट, पत्‍थर के महल-घर;

बोल आशा के विहंगम, किस जगह पर तू छिपा था,
जो गगन पर चढ़ उठाता, गर्व से निज तान फिर-फिर!

नीड़ का निर्माण फिर-फिर, नेह का आह्वान फिर-फिर!


क्रुद्ध नभ के वज्र दंतों में उषा है मुसकराती,
घोर गर्जनमय गगन के कंठ में खग पंक्ति गाती;
एक चिड़‍िया चोंच में, तिनका लिए जो गा रही है,
वह सहज में ही पवन उंचास को नीचा दिखाती!

नाश के दुख से कभी दबता नहीं निर्माण का सुख
प्रलय की निस्‍तब्‍धता से सृष्टि का नव गान फिर-फिर!

नीड़ का निर्माण फिर-फिर, नेह का आह्वान फिर-फिर!

-- हरिवंशराय बच्चन

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Another gem from बच्चन!!
Inspiration for us guys.. नेह का आह्वान फिर-फिर ;)

आदर्श प्रेम

प्यार किसी को करना लेकिन,
कह कर उसे बताना क्या
अपने को अर्पण करना पर,
और को अपनाना क्या


गुण का ग्राहक बनना लेकिन,
गा कर उसे सुनाना क्या
मन के कल्पित भावो से,
औरो को भ्रम में लाना क्या


ले लेना सुगंध सुमनो की,
तोड उन्हे मुरझाना क्या
प्रेम हार पहनाना लेकिन,
प्रेम पाश फैलाना क्या


त्याग अंक में पले प्रेम शिशु,
उनमें स्वार्थ बताना क्या
दे कर हृदय, हृदय पाने की,
आशा व्यर्थ लगाना क्या

-- हरिवंशराय बच्चन

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One of my most favourite हरिवंशराय poem.. !!
Amazing lines --
प्रेम हार पहनाना लेकिन,
प्रेम पाश फैलाना क्या ;)

True classic!!

विरह का जलजात जीवन!

विरह का जलजात जीवन, विरह का जलजात!

वेदना में जन्म करुणा में मिला आवास
अश्रु चुनता दिवस इसका; अश्रु गिनती रात
जीवन विरह का जलजात!

आँसुओं का कोष उर, दृग अश्रु की टकसाल,
तरल जल-कण से बने घन-सा क्षणिक मृदुगात
जीवन विरह का जलजात!

अश्रु से मधुकण लुटाता आ यहाँ मधुमास,
अश्रु ही की हाट बन आती करुण बरसात
जीवन विरह का जलजात!

काल इसको दे गया पल-आँसुओं का हार
पूछता इसकी कथा निश्वास ही में वात
जीवन विरह का जलजात!

जो तुम्हारा हो सके लीला-कमल यह आज,
खिल उठे निरुपम तुम्हारी देख स्मित का प्रात
जीवन विरह का जलजात!

-- महादेवी वर्मा

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Mahadevi KIND of poem ;) .. Not without any reason people compare her with Mirabai!!

मिटने का अधिकार

वे मुस्काते फूल, नहीं
जिनको आता है मुरझाना,
वे तारों के दीप, नहीं
जिनको भाता है बुझ जाना

वे सूने से नयन,नहीं
जिनमें बनते आंसू मोती,
वह प्राणों की सेज,नही
जिसमें बेसुध पीड़ा, सोती

वे नीलम के मेघ, नहीं
जिनको है घुल जाने की चाह
वह अनन्त रितुराज,नहीं
जिसने देखी जाने की राह

ऎसा तेरा लोक, वेदना
नहीं,नहीं जिसमें अवसाद,
जलना जाना नहीं, नहीं
जिसने जाना मिटने का स्वाद

क्या अमरों का लोक मिलेगा
तेरी करुणा का उपहार
रहने दो हे देव अरे
यह मेरे मिटने का अधिकार

-- महादेवी वर्मा

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I really love the lines

क्या अमरों का लोक मिलेगा
तेरी करुणा का उपहार
रहने दो हे देव अरे
यह मेरे मिटने का अधिकार

Mindblowing poem!