Tuesday, February 23, 2010

Another महादेवी

निराशा के झोंको ने देव!
भरी मानस कुंजों में धूल,
वेदनाओं के झंझावात
गए बिखरा यह जीवन फूल !

बरसते थे मोती अवदात
जहाँ तारक लोकों से टूट,
जहाँ छिप जाते थे मधुमास
निशा के अभिसारों को लूट !

जला जिसमें आशा के दीप
तुम्हारी करती थी मनुहार,
हुआ वह उच्छ्वासों का नीड
रुदन का सूना स्वप्नागार !

हृदय पर अंकित कर सुकुमार
तुम्हारी अवहेला की चोट,
बिछाती हूँ पथ में करूणेश
छलकती आँखे हँसते ओठ !

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